पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे गोवा के नारियल शिल्प से बने उत्पाद

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सूरजकुंड (फरीदाबाद)। अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड शिल्प मेला 2025 में थीम स्टेट ओडिशा व मध्यप्रदेश के साथ ही गोवा के शिल्पकार भी मेला में अपनी अदभुत शिल्प कला से पर्यटकों को रूबरू कराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आज कौशल विकास को चलते हस्तशिल्प के क्षेत्र में भी अनगिनत रचनात्मक संभावनाए मौजूद हैं और इन्हीं संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने का कार्य कर रहे हैं गोवा के पारा क्षेत्र में रहने वाले प्रसिद्ध नारियल शिल्प कलाकार विजयदत्तालौटलीकार। वह न केवल नारियल के खोल (शेल) से कई अनोखी और आकर्षक वस्तुए तैयार कर रहे हैं, बल्कि इस प्राचीन भारतीय कला को एक नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए सतत प्रयासरत हैं। इस कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर प्रसिद्धि दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने “नारियल शिल्प की कला” नामक पुस्तक भी लिखी है, जिसमें उन्होंने इस कला के इतिहास, तकनीक, उपयोगिता और इसकी संभावनाओं पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए युवा पीढ़ी को हुनरमंद बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।
हरियाणा सरकार की कार्यशैली सराहनीय :
हरियाणा सरकार द्वारा सूरजकुंड मेला में पर्यटन विभाग द्वारा कला एवं संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए शिल्पकारों को बेहतरीन प्लेटफार्म दिया है,इसके लिए वे हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी और विरासत एवं पर्यटन मंत्री डॉ अरविंद शर्मा का धन्यवाद व्यक्त करते हैं। उन्होंने हरियाणा सरकार की ओर से सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने में निभाई जा रही जिम्मेदारी पर सरकार की कार्यशैली की जमकर सराहना की।
विजयदता ने बताया कि उनके स्टॉल पर हर आगन्तुक की नजर रहती है। नारियल उत्पाद न केवल सुंदरता और रचनात्मकता के अद्भुत उदाहरण हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक हैं। नारियल के खोल से तैयार की गई कलाकृतियाँ और उपयोगी वस्तुएँ दर्शकों को खूब लुभा रही हैं।
उनके बनाए हुए उत्पादों में नारियल के खोल से निर्मित दीपक, गहने, डेकोरेटिव आइटम्स, खिलौने, कटोरे, और अन्य हस्तशिल्प सामग्री शामिल हैं। ये न केवल सौंदर्य की दृष्टि से आकर्षक हैं, बल्कि व्यावहारिक रूप से उपयोगी भी हैं। उनका मानना है कि यह कला भारतीय संस्कृति और पारंपरिक हस्तशिल्प की समृद्ध धरोहर का हिस्सा है, जिसे नई पीढ़ी को सीखना और अपनाना चाहिए।
प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग हो उपयोग
बतौर शिल्पकार उनका उद्देश्य न केवल इस कला को लोकप्रिय बनाना है, बल्कि इसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा देना है। वह कहते हैं कि अगर हम प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करें, तो यह न केवल प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि हमारे समाज को आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाएगा। प्लास्टिक और अन्य हानिकारक सामग्रियों के उपयोग को कम करने के लिए हमें जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की ओर बढ़ना होगा। नारियल शिल्प से बने उत्पाद न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि इनकी मांग भी तेजी से बढ़ रही है।
विजयदत्ता लौटलिकार ने अपनी मेहनत और लगन से नारियल शिल्प की कला को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है। उनकी कलाकृतियाँ न केवल सुंदर और उपयोगी हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भरता के प्रतीक भी हैं। उनके कार्यों से प्रेरित होकर कई लोग इस क्षेत्र में कदम रख रहे हैं, जिससे इस पारंपरिक भारतीय कला को नया जीवन मिल रहा है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि सूरजकुंड मेले में हर देशी विदेशी शिल्पकार कला के जरिये दिन प्रतिदिन आने वाले पर्यटकों पर अपनी कला की अमिट छाप छोड़ रहे हैं।

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