“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: “जब पत्रकारिता ज़िंदा थी…”

Spread the love
प्रेस की चुप्पी, रीलों का शोर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ट्रेंडिंग टैग बन गया। 
प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने ले ली है, जहां सच्चाई की जगह रीलें, और विश्लेषण की जगह व्यूज़ ने कब्जा कर लिया है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब ब्रांड डील्स और ट्रेंडिंग टैग्स में गुम हो गया है। सवाल पूछना अब खतरा है, और चुप रहना ‘सेफ कंटेंट’। आने वाले समय में शायद हमें #ThrowbackToJournalism ट्रेंड करना पड़े। जब प्रेस बोलती थी, और सत्ता थर्राती थी।
– प्रियंका सौरभ
हर साल 3 मई को जब ‘प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ आता है, तो एक गहरी चुप्पी के साथ यह सवाल भी उठता है कि क्या अब भी पत्रकारिता वाकई स्वतंत्र है? क्या यह दिन अब भी उस निडरता, जिम्मेदारी और सच्चाई का प्रतीक है, जिसे किसी ज़माने में पत्रकारिता कहा जाता था? या अब यह दिन भी बस एक रस्मी औपचारिकता बनकर रह गया है—जैसे किसी मृत परंपरा की बरसी?
जिस पत्रकारिता की कभी सत्ता से टकराने की हिम्मत होती थी, आज वही सत्ता की गोद में बैठी दिखाई देती है। कलम अब धारदार नहीं रही, वह विज्ञापनों और प्रायोजनों की रोशनी में चमकने लगी है। संपादकीय नीति अब मूल्य आधारित नहीं, बाजार आधारित हो गई है। न्यूज़ चैनल्स पर खबरों की जगह चिल्लाहट है, बहस की जगह शोर, और सच्चाई की जगह स्क्रिप्ट।
यही वो दौर है जब एक नई जमात ने जन्म लिया—सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर। ये वो लोग हैं जिनके पास पत्रकारिता की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं, पर कैमरे के सामने आने की कला है। इन्होंने सच्चाई की जगह फिल्टर, और रिसर्च की जगह रील को महत्व दिया। इनके लिए हर मुद्दा एक ‘कंटेंट आइडिया’ है—चाहे वो किसी किसान की आत्महत्या हो या किसी लड़की के साथ हुआ अत्याचार।
आज के इन्फ्लुएंसर उस भूमिका में आ गए हैं, जो कभी पत्रकार निभाया करते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि पत्रकार किसी खबर के पीछे सच्चाई खोजता था, जबकि इन्फ्लुएंसर सिर्फ दृश्य और एंगेजमेंट खोजता है। पत्रकार गलत साबित हो सकता है, लेकिन वह जवाबदेह होता है; इन्फ्लुएंसर सिर्फ व्यूज के आंकड़े गिनता है—चाहे उसकी बात का कोई आधार हो या नहीं।
पत्रकार की रिपोर्ट अगर जनता तक न पहुंचे, तो उसे उसकी ईमानदारी का इनाम बेरोजगारी में मिलता है। वहीं इन्फ्लुएंसर अगर भावुक रील बना दे, तो उसे ब्रांड डील और फॉलोवर मिलते हैं। पत्रकार अगर सत्ता से सवाल करे तो देशद्रोही कहा जाता है, लेकिन इन्फ्लुएंसर अगर वही बात हँसते हुए कर दे, तो उसे ‘बोल्ड’ कहा जाता है।
वास्तव में, आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहां जनता ने भी सच सुनने की आदत छोड़ दी है। लोग तथ्य नहीं चाहते, वे भावनाएँ चाहते हैं। उन्हें विश्लेषण नहीं चाहिए, उन्हें मनोरंजन चाहिए। सवाल पूछना अब अवसाद पैदा करता है, और चुटकुले राहत देते हैं। यही वजह है कि प्रेस की चुप्पी हमें खलती नहीं, बल्कि रीलों का शोर हमें राहत देता है।
कल्पना कीजिए, आने वाले समय में 3 मई को हम ‘प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ नहीं, बल्कि ‘इन्फ्लुएंसर दिवस’ मनाया करेंगे। स्कूलों में बच्चों से पूछा जाएगा—”बेटा बड़े होकर क्या बनोगे?” और जवाब मिलेगा—”वीडियो बना के देश बदलूँगा।” मंचों पर ट्रेंडिंग रीलर्स आमंत्रित होंगे, जो बताएंगे कि लोकतंत्र पर रील कैसे बनती है। और प्रेस? वह किसी कोने में बैठी होगी—भूली-बिसरी यादों की तरह।
यह एक हास्यास्पद यथार्थ है, पर उतना ही सच्चा भी। क्योंकि लोकतंत्र की आत्मा, उसकी स्वतंत्र प्रेस में होती है। और अगर वो आत्मा अब इंस्टाग्राम के फॉलोवर गिनने में खो जाए, तो संविधान की प्रास्तावना भी किसी प्रोफ़ाइल बायो जैसी लगने लगेगी।
कवियों, लेखकों, विचारकों और पत्रकारों को मिलकर इस गिरावट को समझना होगा। लोकतंत्र सिर्फ चुनाव से नहीं चलता, वह विचारों की अभिव्यक्ति और सत्य की खोज से चलता है। हमें फिर से उस पत्रकारिता को पुनर्जीवित करना होगा जो सवाल करे, सच्चाई बताए, और सत्ता के सामने झुके नहीं।
वरना वह दिन दूर नहीं जब हम सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चलाएंगे—#ThrowbackToJournalism, और उस दिन की सबसे वायरल रील होगी: “जब पत्रकारिता ज़िंदा थी…”
  • Related Posts

    ज़ीरो डोज़ बच्चे: टीकाकरण में छूटे हुए भारत की तस्वीर

    Spread the love

    Spread the love भारत में 2023 में 1.44 मिलियन बच्चे ‘ज़ीरो डोज़’ श्रेणी में थे, जिनमें अधिकांश गरीब, अशिक्षित, जनजातीय, मुस्लिम और प्रवासी समुदायों से आते हैं। भूगोलिक अवरोध, सामाजिक…

    Continue reading
    “गद्दारी का साया: जब अपनों ने ही बेचा देश”

    Spread the love

    Spread the love मुठ्ठी भर मुगल और अंग्रेज देश पर सदियों राज नहीं करते यदि भारत में गद्दार प्रजाति न होती। यह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। 1999…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    लड़ाई झगड़े के मामले में थाना सराय ख्वाजा की टीम ने पांच आरोपियों को किया गिरफ्तार

    लड़ाई झगड़े के मामले में थाना सराय ख्वाजा की टीम ने पांच आरोपियों को किया गिरफ्तार

    बलात्कार करने व अश्लील विडियों वायरल करने के मामले में दो आऱोपी गिरफ्तार

    बलात्कार करने व अश्लील विडियों वायरल करने के मामले में दो आऱोपी गिरफ्तार

    ज़ीरो डोज़ बच्चे: टीकाकरण में छूटे हुए भारत की तस्वीर

    ज़ीरो डोज़ बच्चे: टीकाकरण में छूटे हुए भारत की तस्वीर

    जीएसटी भारत के आर्थिक एकीकरण और विकास में हुआ गेम-चेंजर साबित

    जीएसटी भारत के आर्थिक एकीकरण और विकास में हुआ गेम-चेंजर साबित

    फरीदाबाद में दिशा समिति की बैठक आयोजित ………… केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने की अध्यक्षता

    फरीदाबाद में दिशा समिति की बैठक आयोजित ………… केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने की अध्यक्षता

    स्वच्छता का संकल्प लें और उसको जीवन में उतारे-विपुल गोयल

    स्वच्छता का संकल्प लें और उसको जीवन में उतारे-विपुल गोयल