
फरीदाबाद । सतयुग दर्शन वसुन्धरा में आयोजित रामनवमी यज्ञ-महोत्सव में आज तीसरे दिन विभिन्न प्रांतों व विदेशों से असंख्य श्रद्धालुओं का आना जारी रहा। आज हवन आयोजन के उपरांत सत्संग में सजनों को सम्बोधित करते हुए श्री सजन जी ने कहा कि जल्दी ही पापी और अधर्मी कलुकाल की औध/मियाद अथवा अवधि समाप्त होने वाली है और इसी के साथ उस शैतान की औलाद यानि दुष्ट भाव-स्वभाव, बुरी प्रवृत्तियाँ व स्मृतियाँ भी समाप्त होने वाली है। अत: बेहतरी इसी में है कि समय रहते ही उस द्वारा दर्शाया मनमत जनित घोर अज्ञानमय मार्ग छोड़कर, गुरुमत अनुसार आत्मज्ञान प्राप्त कर ब्रह्म स्वरूप प्रकाश की पहचान कर लो और अपनी जीवन नैय्या की पतवार प्रभु के हाथ सौंप, बिन औखाईयों, बिन खेचलो जीवन मुक्त हो जाओ।
यहाँ ब्रह्म प्रकाश के संदर्भ में सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ अनुसार बताया गया कि आद्-अंत से समग्र संसार में यानि अन्दर-बाहर, प्रत्येक दिशा- हर जगह यथा आकाश-पाताल, सूरज-चाँद, जल-थल, पवन-पानी, चौदह भवन, नौखण्ड-ब्रह्मांड, सर्गुण-निर्गुण-निर्वाण, सप्तद्वीप-भूमण्डल, गगनमण्डल, जनचर-बनचर, जड़-चेतन आदि में ब्रह्म का ही प्रकाश है व सूरजों के सूरज आद पुरुष, निरंकार ज्योति स्वरूप परब्रह्म परमेश्वर श्री साजन इस प्रकाश का आधार है। अत: इस अनादि सत्य को दृष्टिगत रखते हुए शब्द ब्रह्म यानि मूलमंत्र आद् अक्षर ओ३म के अजपा जाप द्वारा, ख़्याल ध्यान वल व ध्यान प्रकाश वल जोड़, मन-मंदिर प्रकाश रही, ज्योतिमर्य ब्रह्म सत्ता को तन्मयता से ग्रहण करो
आशय यह है कि उठते-बैठते, सोते-जागते, हर वस्तु में उसी आत्मप्रकाश के होने का एहसास करो। इस तरह अन्दर विचरो, बाहर विचरो, घर में हों या बाज़ार में, मन-मन्दिर देखो या जग अन्दर, परिवार वाले देखो या रेहड़ी वाले, बाल-वृद्ध, गरीब-अमीर जो सजन भी आगे आवे, उसको ब्रह्म यानि भगवान का रूप ही समझो और प्रसन्न होवो अर्थात् मन ही मन यह विचार कर हर्षाओ कि हे प्रभु ! तेरे खेल कितने निराले हैं। कितने रूपों में कितनी तरह का खेल, खेल रहे हो और खेल खेलते हुए भी उससे निर्लेप हो। इस तरह जगत के सब दृश्य देखते हुए अपने मन में किसी अन्य प्रकार का भाव पैदा करने के स्थान पर, ब्रह्म भाव का विकास कर हर्षाओ व समभाव-समदृष्टि हो जाओ। ऐसा पुरूषार्थ करने पर स्वयंमेव ‘जो प्रकाश मन-मन्दिर में देखा है, वही प्रकाश सारे जग में दिखाई देगा‘ और आप सर्व-सर्व अपने ही प्रकाश का अनुभव कर जान जाओगे कि चाहे वस्तुओं के नाम व रूप अनेक हैं, पर उनमें एक ही शक्ति/ब्रह्म सत्ता व्याप्त है और वही मेरा असलियत ब्रह्म स्वरूप यानि अपना आप है। अन्य शब्दों में परब्रह्म परमेश्वर की नित्य ब्रह्म शक्ति ने ही, हर अनित्य वस्तु को धारण किया हुआ है और चहुं ओर विभिन्न रूप, रंगों में वही ब्रह्म स्वरूप ही निगाह आ रहा है। सर्व-सर्व ऐसा भासित होने पर आप अपने ज्योतिर्मय आत्मस्वरूप का सहज ही बोध हो जाएगा
जब यह आद् सत्य जान लिया कि सर्व-सर्व वही ब्रह्म ही ब्रह्म है तो फिर समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार हर हालत में एकरस बने रहते हुए, ब्रह्म भाव अनुसार निर्लिप्तता से स्वतन्त्र जीवन जीना व परस्पर सजन भाव का शास्त्रविहित् युक्ति अनुसार व्यवहार करना सहज हो जाएगा
अंत में श्री सजन जी ने कहा कि अगर इस आदि सत्य से परिचित हो आपके मन में भी बह्ममय होकर निर्विकारिता से जीवन जीने की उत्कंठा पैदा हुई है तो सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर स्थापित समभाव-समदृष्टि के स्कूल में लग रह आत्मिक ज्ञान की कक्षाओं से आनलाईन/ आफॅलाइन मोड में जुड़ो व सजन भाव अपना कर सजनता के प्रतीक बन जाओ। इस तरह मृतलोक पर फतह पाओ और परमधाम पहुँच विश्राम को पाओ।