
– यह कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सशक्त कदम
फरीदाबाद, 18 जून। महिला एवं बाल विकास विभाग फरीदाबाद द्वारा जिला कार्यक्रम अधिकारी मिनाक्षी चौधरी की अध्यक्षता में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत एक नव-विचार के रूप में “सहेली” कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। कार्यक्रम में स्वास्थ्य विभाग से डॉ रचना डिप्टी सीऍमओ भी मौजूद रही। इस योजना के तहत ऐसी प्रत्येक गर्भवती महिला जिसकी पहली संतान बेटी है, को एक सहयोगी महिला – आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर या एएनएम – के रूप में “सहेली” प्रदान की जाएगी। यह सहेली गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य, पोषण, टीकाकरण और सुरक्षित प्रसव से संबंधित सभी पहलुओं में मार्गदर्शन व निगरानी करेगी। इस पहल का उद्देश्य केवल मातृ और शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करना ही नहीं, बल्कि लिंगानुपात में सुधार एवं बेटियों के प्रति समाज की सोच में सकारात्मक परिवर्तन लाना भी है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी ने बताया कि “सहेली” कार्यक्रम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए “सहेली” पर ओरिएंटेशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सभी सुपरवाईजर व “सहेली” आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया कि वे गर्भवती महिलाओं के लिए भरोसेमंद मित्र की तरह सहयोग करें। यह कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सशक्त कदम है, जो “बेटी को भी जीने का हक” जैसे संदेश को जन-मानस तक पहुँचाने में सहायक होगा। सभी पार्षदों, सरपंचों एवं स्थानीय निकायों से इस अभियान को जनांदोलन बनाने का आह्वान किया गया।
स्वास्थ्य विभाग से डॉ रचना डिप्टी सीऍमओ एन. एच. ऍम. ने बताया कि यदि गर्भवती महिला की पहली संतान बेटी है, तो विशेष रूप से संवेदनशील रवैया अपनाना आवश्यक है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को न केवल स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवानी हैं, बल्कि भ्रूण लिंग जांच जैसी गैर-कानूनी गतिविधियों के प्रति जागरूकता भी फैलानी है। भावनात्मक सहयोग की भूमिका कार्यकर्ताओं को यह भी बताया गया कि वे एक “सहेली” की तरह गर्भवती महिलाओं को संतुलित आहार, नियमित स्वास्थ्य जांच, मानसिक और शारीरिक आराम तथा संस्थागत प्रसव के लाभों के बारे में सहज व आत्मीय रूप से जानकारी दें |
उन्हें बताया यदि किसी गर्भवती महिला का गर्भपात होता है तो “सहेली” आंगनवाड़ी कार्यकर्ता गृह भ्रमण करते हुए कारणों का पता लगाये | इस संवादात्मक और सहयोगी भूमिका से महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा और बेटियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को बल मिलेगा। जिसमें भ्रूण लिंग जांच की रोकथाम, लिंगानुपात सुधार और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवा के सुदृढ़ीकरण पर बल दिया गया।