बिखर रहे चूल्हे सभी, सिमटे आँगन रोज। नई सदी ये कर रही, जाने कैसी खोज॥

Spread the love
पिछले कुछ समय में पारिवारिक ढांचे में काफ़ी बदलाव हुआ है। मगर परिवारों की नींव का इस तरह से कमजोर पड़ना कई चीजों पर निर्भर हो गया है। अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी होना ही रिश्ते टूटने की प्रमुख वज़ह है। जब परिवारों में होड लगनी शुरू हो जाये एवं एक दूसरे के सुख-दुख से ज़्यादा परस्पर प्रतिस्पर्धा का भाव जग जाये। समझना कि परिवार अथवा रिश्ते अपनी अंतिम सांस गिन रहे है। परिवार के टूटने के कारण अचानक पैदा नहीं होते। कई बार और समस्याएँ भी हो सकती है जैसे पैसा, प्रॉपर्टी, पसंद-नापसंद आदि। छोटे-मोटे झगड़े, किसी सदस्य की अनदेखी वगैराह के चलते भी अक्सर परिवारों में मनमुटाव हो जाता है। पर जो भी हो परिवार सबसे बडे सर्पोट सिस्टम में से एक होता है। इसलिए कोशिश करनी चाहिए की परिवार की मूल अवधारणा ज़िंदा बनी रहे और केवल मर्दस डे, फार्दस डे या सोशल मीडिया तक सीमित होकर न रह जाए।
-प्रियंका सौरभ
आज सभी को एक संस्था के रूप में पारिवारिक मूल्यों और परिवार के बारे में सोचने-समझने की बेहद सख्त ज़रूरत है और साथ ही इन मूल्यों की गिरावट के कारण ढूँढकर उनको दुरुस्त करने की भी ज़रूरत है। इसके लिए समाज के कर्णधार कवि / लेखकों / गायकों / नायक / नायिकाओं / शिक्षक वर्गों और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ राजनीतिज्ञों को एक संस्था के रूप में परिवार के पतन के निहितार्थ के बारे में भी लिखना और सोचना चाहिए। खुले मंचो से इस बात पर चर्चा होनी चाहिए कि इस गिरावट के कारण क्या है? और इस गिरावट से कैसे उभरा जा सकता है? युवा कवि डॉ सत्यवान सौरभ ने इस स्थिति को अपने शब्दों में कहते हुए सही लिखा है कि-
” टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव।
प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव॥
बिखर रहे चूल्हे सभी, सिमटे आँगन रोज।
नई सदी ये कर रही, सौरभ कैसी खोज॥”
परिवार, भारतीय समाज में, अपने आप में एक संस्था है और प्राचीन काल से ही भारत की सामूहिक संस्कृति का एक विशिष्ट प्रतीक है। नैतिक मजबूती के साथ-साथ यह व्यक्ति के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों को बिना किसी हिचकिचाहट के कठिन समय में भरोसा करने के लिए लचीलापन प्रदान करता है। यह कठिनाइयों से निपटने के लिए अनैतिक साधनों के उपयोग से बचाता है। परिवार लोगों को सांसारिक समस्याओं के प्रति स्त्री के दृष्टिकोण को विकसित करने में मदद करता है। मगर वर्तमान दौर में हम संस्था के रूप में परिवार में गिरावट का कटु अनुभव झेल रहे है।
” घर-घर में मनभेद है, बचा नहीं अब प्यार॥
फूट-कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार॥
स्नेह और आशीष में, बैठ गई है रार।
अरमानों के बाग़ में, भरा जलन का खार॥”
गिरावट के प्रतीक के रूप में आज परिवार खंडित हो रहा है, वैवाहिक सम्बन्ध टूटने, आपसे भाईचारे में दुश्मनी एवं हर तरह के रिश्तों में कानूनी और सामाजिक झगड़ों में वृद्धि हुई है। आज सामूहिकता पर व्यक्तिवाद हावी हो गया है। वर्तमान स्थिति में भड़काऊ रवैया परिवारों के बिखरने का प्रमुख कारण है। परिवार के अन्य सदस्यों को उच्च आय और कम जिम्मेदारी ने विस्तारित परिवारों को विभाजित किया है। आज के अधिकांश सामाजिक कार्य, जैसे कि बच्चे की परवरिश, शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, बुजुर्गों की देखभाल आदि; बाहर की एजेंसियों, जैसे क्रेच, मीडिया, नर्सरी स्कूलों, अस्पतालों, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों, धर्मशाला संस्थानों ने ठेकेदारों के तौर पर संभाल लिए हैं जो कभी परिवार के बड़े लोगों की जिम्मेवारी होती थी।
” बड़े बात करते नहीं, छोटों को अधिकार।
चरण छोड़ घुटने छुए, कैसे ये संस्कार॥
कहाँ प्रेम की डोर अब, कहाँ मिलन का सार।
परिजन ही दुश्मन हुए, छुप-छुप करे प्रहार॥”
परिवार संस्था के पतन ने हमारे भावनात्मक रिश्तों में बाधा पैदा कर दी है। एक परिवार में एकीकरण बंधन आपसी स्नेह और रक्त से सम्बंध हैं। एक परिवार एक बंद इकाई है जो हमें भावनात्मक सम्बंधों के कारण जोड़कर रखता है। नैतिक पतन परिवार के टूटने में अहम कारक है क्योंकि वे बच्चों को दूसरों के लिए आत्म सम्मान और सम्मान की भावना नहीं भर पाते हैं। पद-पैसों की अंधी दौड़ से आज सामाजिक-आर्थिक सहयोग और सहायता का सफाया हो गया है। परिवार अपने सदस्यों, विशेष रूप से शिशुओं और बच्चों के विकास और विकास के लिए आवश्यक वित्तीय और भौतिक सहायता तक सिमित हो गए हैं, हम आये दिन कहीं न कहीं बुजुर्गों सहित अन्य आश्रितों की देखभाल के लिए, अक्षम और दुर्बल परिवार प्रणाली की गिरावट की बातें सुनते और देखते हैं जब उन्हें अत्यधिक देखभाल और प्यार की आवश्यकता होती है।
भविष्य में संस्था के रूप में परिवार में गिरावट समाज में संरचनात्मक परिवर्तन लाएगी। सकारात्मक पक्ष पर, भारतीय समाज में जनसंख्या की वृद्धि में कमी देखी जा सकती है और संस्था के रूप में परिवार में गिरावट के प्रभाव के रूप में हो सकता है। हालाँकि, संयुक्त परिवार से परिवार के संरचनात्मक परिवर्तनों को समझने की आवश्यकता है, कुछ मामलों में इसे परिवार प्रणाली की गिरावट नहीं कहा जा सकता है। जहाँ परिवार प्रणाली किसी सकारात्मक परिवर्तन के लिए संयुक्त परिवार से एकल परिवार में परिवर्तित होती है। वैसे भी भारतीय समाज भी परिवार के संलयन और विखंडन की अनूठी विशेषता का निवास करता है जिसमें भले ही परिवार के कुछ सदस्य अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग रहते हैं, फिर भी एक परिवार के रूप में रहते हैं।
” बच पाए परिवार तब, रहता है समभाव।
दुःख में सारे साथ हो, सुख में सबसे चाव॥
अगर करें कोई तीसरा, सौरभ जब भी वार॥
साथ रहें परिवार के, छोड़े सब तकरार॥”
परिवार एक बहुत ही तरल सामाजिक संस्था है और निरंतर परिवर्तन की प्रक्रिया में है। आधुनिकता समान-लिंग वाले जोड़ों (एलजीबीटी सम्बंध) , सहवास या लिव-इन सम्बंधों, एकल-माता-पिता के घरों, अकेले रहने वाले या अपने बच्चों के साथ तलाक का एक बड़ा हिस्सा उभरने का गवाह बन रहा है। इस तरह के परिवारों को पारंपरिक रिश्तेदारी समूह के रूप में कार्य करना आवश्यक नहीं है और ये सामाजीकरण के लिए अच्छी संस्था साबित नहीं हो सकती। भौतिकवादी युग में एक-दूसरे की सुख-सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा ने मन के रिश्तों को झुलसा दिया है।
कच्चे से पक्के होते घरों की ऊँची दीवारों ने आपसी वार्तालाप को लुप्त कर दिया है। पत्थर होते हर आंगन में फ़ूट-कलह का नंगा नाच हो रहा है। आपसी मतभेदों ने गहरे मन भेद कर दिए है। बड़े-बुजुर्गों की अच्छी शिक्षाओं के अभाव में घरों में छोटे रिश्तों को ताक पर रखकर निर्णय लेने लगे है। फलस्वरूप आज परिजन ही अपनों को काटने पर तुले है। एक तरफ़ सुख में पडोसी हलवा चाट रहें है तो दुःख अकेले भोगने पड़ रहें है। हमें ये सोचना-समझना होगा कि अगर हम सार्थक जीवन जीना चाहते है तो हमें परिवार की महत्ता समझनी होगी और आपसी तकरारों को छोड़कर परिवार के साथ खड़ा होना होगा तभी हम बच पायंगे और ये समाज रहने लायक होगा।
  • Related Posts

    महिला पुरस्कारों की गरिमा और निष्पक्षता पर उठते प्रश्न

    Spread the love

    Spread the love हमारे तेज़ी से बदलते सामाजिक और राजनीतिक माहौल में, महिला पुरस्कारों का महत्त्व और आवश्यकता जांच के दायरे में आ रही है। हाल ही हरियाणा में महिला…

    Continue reading
    *मस्ती और ठिठोली, लेकर आई होली।* ————बुरा न मानो, होली है”

    Spread the love

    Spread the love होली एक जीवंत और रंगीन उत्सव है जो प्रेम, एकता और एकजुटता का प्रतीक है। यह हमारे मतभेदों को दूर करने और सद्भाव, क्षमा और खुशी को…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    टेलीग्राम के माध्यम से धोखाधड़ी करने के 2 मामलों में साइबर थाना बल्लभगढ की टीम ने 2 आरोपियों को किया गिरफ्तार

    टेलीग्राम के माध्यम से धोखाधड़ी करने के 2 मामलों में साइबर थाना बल्लभगढ की टीम ने 2 आरोपियों को किया गिरफ्तार

    फर्जी CBI अधिकारी बनकर 22.42 लाख रूपये की ठगी के मामले में साइबर थाना सेंट्रल टीम ने दूसरे आरोपी को किया गिरफ्तार

    फर्जी CBI अधिकारी बनकर 22.42 लाख रूपये की ठगी के मामले में साइबर थाना सेंट्रल टीम ने दूसरे आरोपी को किया गिरफ्तार

    राष्ट्रीय नारी रत्न अवार्ड 2025 से नवाजी गई समजेविका सुनीता वर्मा

    राष्ट्रीय नारी रत्न अवार्ड 2025 से नवाजी गई समजेविका सुनीता वर्मा

    एक दिवसीय हिन्दी कार्यशाला का  हुआ आयोजन

    एक दिवसीय हिन्दी कार्यशाला का  हुआ आयोजन

    फरीदाबाद प्रशासन ने रात्रि ठहराव कार्यक्रम के तहत गांव कांवरा में किया ग्रामीणों से संवाद

    फरीदाबाद प्रशासन ने रात्रि ठहराव कार्यक्रम के तहत गांव कांवरा में किया ग्रामीणों से संवाद

    यमुना में अवैध खनन की जांच के लिए फील्ड में उतरी विभिन्न विभागों के अधिकारियों की संयुक्त टीम

    यमुना में अवैध खनन की जांच के लिए फील्ड में उतरी विभिन्न विभागों के अधिकारियों की संयुक्त टीम